सिस्टम के मद्देनजर ठंडी हवाएं हवा में कुछ ठंडक लाएंगी। साफ आसमान, नम और ठंडी हवाओं के साथ औसत हवा अगले 3-4 दिनों में न्यूनतम तापमान में 3-4 डिग्री सेल्सियस की गिरावट लाएगी। पहाड़ों की ऊंची और मध्य पहुंच में बर्फबारी और ठंडी उत्तर-पश्चिमी हवाओं के साथ निचली पहाड़ियों में मध्यम बारिश से पूरे क्षेत्र में पारे के स्तर में महत्वपूर्ण गिरावट आएगी। अगले 10 दिनों तक कोई ताजा पश्चिमी विक्षोभ कोई और रुकावट पैदा नहीं करेगा।
दिल्ली-एनसीआर में हफ्तेभऱ वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर रही. स्मॉग की घनी चादर ने सांस लेने वाली हवा में जहर घोला हुआ था. इस बीच अचानक 10 नवंबर को सुबह तड़के बादल गरजे और बरसने लगे. हालांकि इसका अनुमान लगाया ही नहीं जा रहा था. करीब आधे घंटे की बारिश ने स्मॉग की पूरी धुंध को छांट दिया. हवा साफ हो गई. विजिबिलिटी भी एकदम क्लियर.
इन दक्षिणी राज्यों में लगातार बारिश हो रही थी. बेंगलुरु से लेकर चेन्नई तक बारिश का आलम ये था कि लोगों को इससे मुश्किल होने लगी थी लेकिन उत्तर भारत में बारिश के आसार नजर नहीं आ रहे थे. इसी वजह से दिल्ली सरकार क्लाउड सीडिंग पर विचार करने लगी थी. इसी वजह से दिल्ली सरकार ने ऑड-इवेन जैसी व्यवस्था 13 नवंबर से लागू होने की घोषणा कर दी थी.
ऐसे हालात में वाकई 10 नवंबर को सुबह हुई बारिश त्योहारी सौगात की तरह आई. उसने आधे घंटे की गरज-बरस में वायु प्रदूषण की तस्वीर ऐसी बदली, जिसके बारे में हफ्ते भर से कोई सोच ही नहीं पा रहा था, क्योंकि मौसम विभाग ने भी बारिश का कोई अनुमान नहीं लगाया था.
अब जबकि बारिश ने दिल्ली-एनसीआर की हवा की क्वलिटी को बेहतर कर दिया है, तो सवाल उठना लाजिमी है कि बारिश वायु प्रदूषण की स्थिति में क्या रोल निभाती है.
आमतौर पर जब बारिश होती है तो हवा में मौजूद धूल कण उसकी ओर आकर्षित होकर जैल बना लेते हैं. हवा में मौजूद इन कणों को एरोसोल या एयर मॉल्यूक्यूल्स कहा जाता है. इन कणों में कालिख, सल्फेट्स और कई तरह के कार्बनिक कण होते हैं. ये कण वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होते हैं. बारिश की बूंदें और एरोसोल आपस में आकर्षित होकर जुड़कर धरती पर गिरते है. फिर पानी के साथ बह जाते हैं या धऱती इन्हें सोख लेती है.
जैसे ही बारिश की बूंद वायुमंडल में आती है तो जमीन से टकराने के पहले सैकड़ों छोटे एयर मॉल्यूक्यूल्स को अपनी सतह पर आकर्षित कर सकती है. शोध में पाया गया है कि बारिश की बूंदें जितनी छोटी होंगी, हवा में मौजूद प्रदूषण के कणों को उतना ज्यादा आकर्षित करेंगी. कई बार ये प्रक्रिया बादल की ऊंचाई और बारिश की तेजी पर भी निर्भर करती है.
शोध में कहती है कि हर बारिश की बूंद आवेशित होती हैः लिहाजा, बूंद वायुमंडल में मौजूद तमाम आवेशित कणों के साथ मिलकर जैल बनाती हैं. साफ है कि बारिश एयर पॉल्यूशन को नीचे ले आती है. हवा में तैरने वाले खतरनाक कण ही हवा में जहर घोलते हैं. यही कण सर्दी शुरू होने पर स्मॉग बनाते हैं. हवा में घुलकर ये स्मॉग दृश्यता कम करने के साथ ही आसमान में धुआं सा बना देता है. ये स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है.
बारिश होने तक ये कण हल्के होकर हवा में उड़ते रहते हैं. बारिश के संपर्क में आकर जैल बनाते हैं और धरती पर गिर जाते हैं. इसीलिए बारिश के बाद आमतौर पर हवा साफ हो जाती है. साफ हवा में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, हीलियम, ओजोन, निऑन, जेनान, जलवाष्प के कण शामिल होते हैं. शुद्ध हवा में किसी भी तरह के प्रदूषक नहीं होते. इसमें दुर्गंध और धूल के कण भी नहीं होते.
हवा में ऑक्सीजन की मात्रा 100 या 50 फीसदी नहीं होती, बल्कि करीब 21 फीसदी ही होती है. इसके बाद वायुमंडल में दूसरी सबसे ज्यादा पाई जाने वाली गैस नाइट्रोजन होती है. वायुमंडल में करीब 78 फीसदी नाइट्रोजन होती है. बाकी गैसें एक फीसदी से कम मात्रा में होती हैं. ऑक्सीजन पृथ्वी की ऊपरी परत में सबसे ज्यादा होती है. ये पृथ्वी की ऊपरी परत का करीब 46.6 फीसदी हिस्सा होती है.
आज गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरु, झुन्झनू, सीकर, अलवर, भरतपुर धोलपुर जिलों में हल्की बारिश होने की संभावना है। 11 नवंबर से आगामी एक सप्ताह राज्य में मौसम शुष्क रहेगा।आगामी 48 घंटे में न्यूनतम तापमान में 3-5 डिग्री से. गिरावट होने की प्रबल संभावना है।पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से पिछले 24 घंटो में जोधपुर, बीकानेर, जयपुर व भरतपुर संभाग में कहीं-कहीं मेघगर्जन के साथ हल्की बारिश दर्ज की गई है। पश्चिमी राज में सर्वाधिक बारिश नोखा, बीकानेर में 6mm तथा पूर्वी राज के महवा, दौसा में 2mm दर्ज की गई है।*
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